हिंदी एक वैज्ञानिक तथा अति समृद्ध भाषा है: डा. रवीन्द्र शुक्ल (पूर्व कृषि एवं शिक्षामंत्री)


शुभम श्रीवास्तव
झांसी, 1 जून 2020 (दैनिक पालिग्राफ)। राष्ट्रीय संस्था ‘हिंदी साहित्य परिषद्’ के तत्वावधान में, लॉक डाउन के नियमों का पालन करते हुए, डॉ. रमा सिंह गुना के सफल संचालन एवं संयोजन में राष्ट्रीय संगोष्ठी का प्रथम ऑनलाइन आयोजन किया गया। कार्यक्रम अध्यक्षता डॉ. रवींद्र शुक्ल (पूर्व कृषि एवं शिक्षामंत्री) झांसी ने की। मुख्यअतिथि अखिल भारतीय साहित्य परिषद के संगठन महामंत्री श्रीधर पराडकर रहे। 
कार्यक्रम में पूरे देश से जुड़े साहित्य मनीषियों ने राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत काव्य रचनाओं की प्रस्तुति दी एवं विद्वानों के सारगर्भित उद्बोधन का लाभ प्राप्त किया।
सरस्वती वंदना श्रीमती निधि द्विवेदी प्रधानाचार्य रायबरेली द्वारा प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात सुनील कुमार ‘कर्नाटक’, सुषमा यदुवंशी ‘छत्तीसगढ़’, आलोक मिश्रा प्रयागराज ,रामचरण ‘रुचिर’ ग्वालियर, केशव देव शर्मा आगरा, शरद अग्रवाल जबलपुर, सरिता नोहरिया पटियाला (पंजाब), रमेश शर्मा चित्तौड़गढ़ (राजस्थान), जमुना कृष्णराज ‘चेन्नई’, डॉ. सुधीर शर्मा ‘भोपाल’ एवं सूरजमल मंगल, श्योपुर आदि ने सहभागिता की।    
मुख्य अतिथि श्रीयुत् श्रीधर पराड़कर ने अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि साहित्य जगत के स्वस्थ एवं सकारात्मक योगदान के लिए हम सभी समर्पित हों, वैज्ञानिक अविष्कारों के सहयोग के साथ हम कैसे साहित्यिक दृष्टि से अपनी भूमिका निभा सकते हैं उसके लिए है यह ऑनलाइन गोष्ठी बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी। उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य परिषद के विद्वानों द्वारा दिशानिर्देशन प्राप्त कर नयी प्रतिभाएँ अपने लेखन को जन उपयोगी तथा उत्कृष्ट बनाएँ। साहित्य का उद्देश्य लोकरंजन मात्र नहीं, लोककल्याण है। साहित्य हमारी संवेदना की अभिव्यक्ति है। जो संवेदना को शब्दों से उतारता है वह साहित्यकार होता है। साहित्य सम्मेलनों से जन संवेदना प्रकट होती है, साहित्य ईश्वर प्रदत्त गुण है। इसी क्रम में उन्होंने साहित्यकारों का आह्वान किया कि साहित्य परिषद की  विविध विधाओं यात्रा वृतांत, प्रबोधन ,संगोष्ठी में जुड़कर ज्ञान का विस्तार एवं प्रसार करें। आपके प्रेरक उद्बोधन ने साहित्यकारों को नव दिशा बोधक के रूप में सराहा।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉ. रवीद्र शुक्ल ने कहा कि हिंदी एक वैज्ञानिक तथा अति समृद्ध भाषा है इसका हर शब्द अलग-अलग अर्थ देता है। विश्व की कोई भाषा इतनी विराट एवं व्यापक नहीं है इसके बाद जो बावजूद अपने घर अर्थात देश में उपेक्षित है हम ‘हिंदी साहित्य परिषद’ के माध्यम से हिंदी को राष्ट्रभाषा के वास्तविक आसन पर पदस्थ करने हेतु प्रतिबद्ध हैं। आपने ‘ई मैग्जीन’ प्रकाशन की बात कही साथ ही संस्था का उद्देश्य साहित्य के नवांकुरों का पुष्पन-पल्लवन बताया। 
डॉक्टर सुधीर शर्मा ने भगवान श्री राम पर बृजभाषा में रचित सुंदर कवित्त पढ़े- 
धर्म को दिनमान लेते जब अवसान
देह ब्रह्म जीव धर जगत के काम को
चेन्नई से डॉ.जमुना कृष्णराज ने हिंदी साहित्य परिषद के गठन को हिंदी के राष्ट्रीय उन्नयन हेतु बहुत ही सराहनीय कदम बताया तथा दक्षिण भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के जीवन पर प्रकाश डाला।
डॉ. रमा सिंह ने सुंदर दोहे प्रस्तुत करके सभीका मन मोह लिया- संकल्पों की रौशनी कस्तूरी की गंध,
झरे हृदय में फूल से सरगम के नव छंद।
इसी क्रम में चित्तौड़गढ़ के प्रसिद्ध गीतकार रमेश शर्मा ने मनमोहक गीत-
पीड़ा की छैनी ने मुझको गढ़ा है,
उपन्यास का मैं कथानक नहीं हूँ.. गाकर मंत्रमुग्ध कर दिया।
पंजाब से सरिता नोहरिया ने हृदयस्पर्शी गीत प्रस्तुत किया-
कहते थे जो तुम बिन जी नहीं सकते, एहसास दूरियों का जो दिलाया तो बुरा मान गए..
कार्यक्रम को ऊंचाइयां देते हुए रामचरण ‘रुचिर’ ग्वालियर ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर को श्रृद्धासुमन अर्पित करते हुए-
‘भारत के अमर सपूतों सी ,
जग में कोई नजीर नहीं ।
स्वातंत्र्य समर के वीरों में ,
सावरकर सा  वीर नहीं।’
सुंदर काव्य पाठ किया।
सुषमा यदुवंशी ने- मातृभूमि की माटी है चंदन, आओ लगाएं तिलक और करें वंदन..गाकर मातृभूमि की वंदना प्रस्तुत की।
डॉ केशव देव शर्मा ने
‘छूटी सखियां खेली जो संग,
 बचपन छूट गया। 
लगता वो कोई सपना था,
 जो अब टूट गया, गाकर मंत्रमुग्ध कर दिया।
आलोक मिश्रा ने सुमधुर प्रेम गीत प्रस्तुत किया-
मुझको यूं ही भुला दोगी..
कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन के साथ ही अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए सूरजमल मंगल ने माँ भारती की आरती प्रस्तुत की-
‘मेरे प्यारे हिंदुस्तान...
अमर रहे मेरे देश का वैभव जिसमें जन्मे वीर महान।
कार्यक्रम में समस्त सहयोगी, कार्यक्रम संयोजक मंडल, साहित्यकारों सहित अतिथियों एवं पत्रकारों आदि का आभार प्रदर्शन करते हुए सबको धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम में रामचरण ‘रुचिर’ सहित ग्वालियर से राजकिशोर बाजपाई अभय, पुष्पा मिश्रा, डॉ मंजू लता आर्य, डॉ.सुखदेव मखीजा, उपेंद्र कस्तूरे व सागर से वंदना गुप्ता, वी.पी. सिंह जादौन गुना, अशोक गोयल, जगदीश शर्मा आदि सहित समूह के सभी सदस्यों ने ऑनलाइन कवि सम्मेलन का लाभ लिया और अपनी प्रतिक्रिया देकर कवियों का उत्साहवर्धन किया। कार्यक्रम को बहुत ही सफल एवं सराहनीय बताते हुए सभी ने भूरि भूरि प्रशंसा की।


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