हमें मातृभूमि की अपनी मां की तरह इज्जत और हिफाजत करनी चाहिए: डाॅ. नईम
झाँसी, 17 अक्टूबर (दैनिक पालिग्राफ)। ''सर सैयद अहमद खान एक प्रसिद्ध मुस्लिम धर्म सुधारक, शिक्षक और राजनीतिज्ञ थे। पारम्परिक शिक्षा प्राप्त करने के बाबजूद भी वे भारतीय मुसलमानों के लिए आधुनिक शिक्षा के पैरोकार रहे, उसी के परिणामस्वरुप उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की। वे हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। उन्होंनें इस्लाम धर्मानुयायियो में बौद्धिक चेतना प्रदान करने के लिए ''तहजीबुल एखलाक'' नामक पत्रिका निकाली।'' यह विचार कलाम ऐजुकेशनल एण्ड वेलफेयर सोसायटी के तत्वाधान में सोसायटी के ताज कम्पाउण्ड स्थित कार्यालय पर भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम आन्दोलन के प्रमुख समाज सुधारक सर सैयद अहमद की 203वीं जयन्ती के अवसर पर ''भारतीय शिक्षा के उन्नयन में सर सैयद अहमद खान का योगदान'' विषयक संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के रुप में सम्बोधित करते हुए प्र्रगतिशील लेखक संघ, झाँसी इकाई के अध्यक्ष डाॅ. अनिल अविश्रान्त ने व्यक्त किये। उन्होंनें कहा कि आज के समय में प्रत्येक भारतीय को चाहिए कि वे सर सैयद के उदारवादी विचारों से पे्ररणा लेकर आधुनिक शिक्षा ग्रहण करें, ताकि वे समाज में अपना सकारात्मक योगदान दे सकें।
संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रुप में सम्बोधित करते हुए फिल्म एवं टी. वी. अभिनेता आरिफ शहडोली ने कहा कि सर सैयद अहमद का जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली में हुआ था, तथा उनका निधन 25 मार्च सन 1898 को अलीगढ में हुआ। उन्होंने कुरान के साथ फारसी, अरबी, गणित और चिकित्सा शिक्षा का भी अध्ययन किया। उनकी साहित्य के अध्ययन में बहुत रुचि थी। अपने पिता की मृत्यु के बाद वे ईस्ट इंडिया कंपनी में लिपिक के रूप में शामिल हुए, धीरे-धीरे उन्होंनें पदोन्नति प्राप्त की और वे लोअर कोर्ट के जज नियुक्त हुए। उन्होनंें कहा कि सर सैयद ने अलीगढ़ आंदोलन को आगे बढ़ाया, जो मूल रूप से एक शैक्षिक उपक्रम था। उन्होंने अनेकों विद्यालयों की स्थापना की और उनमें से मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज, जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से विकसित हुआ, जो वर्तमान में उत्तर भारत में आधुनिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केन्द्र है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी के समाज कार्य विभाग के असिस्टेन्ट प्रोफेसर डाॅ. मुहम्मद नईम ने कहा कि सर सैयद आजादी के आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण मुस्लिम नेता अवश्य थे, किन्तु वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल पैरोकार थे। सर सैयद हमेशा कहा करते थे कि हिन्दू-मुसलमान भारत रुपी खूबसूरत दुल्हन की दो प्यारी प्यारी आंखें है, जिनमें से एक भी आंख को कुछ भी हुआ, तो प्यारी दुल्हन भैंगी हो जायेगी। इसलिए भारत की तरक्की के लिए हिन्दू-मुस्लिम एकता जरुरी है।
उन्होनंे कहा कि वर्तमान दौर में आवश्यक है कि हम अपनी मातृभूमि की अपनी मां की तरह इज्जत और हिफाजत करें। उन्होनंे कहा कि सर सैयद अहमद के उदारवादी एवं मुक्त विचारों, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, साम्प्रदायिक सौहार्द के कारण उनका सर्वत्र सम्मान होता था, जिससे प्रभावित होकर अंग्रेज सरकार ने उन्हें ''नाइट कमांडर ऑफ स्टार ऑफ इंडिया'' की उपाधि तथा एडिनबरा विश्वविद्यालय ने उन्हें ''डॉक्टर ऑफ लॉ '' की मानक उपाधि से सम्मानित किया।
संगोष्ठी का संचालन जाकिर खान ने एवं स्वागत तथा आभार कलाम एजुकेशनल एण्ड वेलफेयर सोसायटी के निदेशक शेख अरशद ने किया। संगोष्ठी का प्रारम्भ रिफा नाज द्वारा राष्ट्रभक्ति गीत ''भारत हमको जान से प्यारा है'' के गायन से हुआ। इस अवसर पर नौशाद खान, जाहिर अली, हयात बेग, अरमान अली, मो. कैस, असगर अली आदि उपस्थित रहे।
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